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भारत में गर्मी का कहर बढ़ रहा !!

  • Destination Europe
  • Added by Admin
  • April 08, 2023

हीट वेव की घटनाओं में 25 फीसदी और गर्मी से मौतों में 27 फीसदी की बढ़ोतरी

पाकिस्तान से उत्तर भारत और बांग्लादेश के डेल्टा तक फैले इलाके में गर्मी की जबर्दस्त मार पड़ रही है। यह धरती के सबसे गर्म और अधिक आबादी वाले इलाकों में शामिल है। लेंसेट प्लेनेटरी हेल्थ की एक स्टडी के अनुसार 2000 से 2019 के बीच दक्षिण एशिया में हर साल गर्मी से एक लाख दस हजार से अधिक मौतें हुईं हैं। बीते साल की गर्मी तो आर्थिक नुकसान के हिसाब से बहुत गंभीर थी। गर्मी के कारण अगले सात साल में भारत के जीडीपी में 12 से 20 लाख करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है।

भारत में 1901 के बाद दिसंबर 2022 और इस साल फरवरी के महीने सबसे ज्यादा गर्म रहे हैं। साइंटिस्ट गर्मी के प्रभाव को तापमान और नमी के हिसाब से देखते हैं। इस स्थिति को वेट बल्ब कहते हैं। इसमें शरीर के विभिन्न अंगों जैसे दिल, किडनी, लिवर की गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता कम होती है। 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक वेट बल्ब टेम्परेचर मानव शरीर के लिए घातक भी हो सकता है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ऐसे स्थानों में हो सकता है जहां वेट बल्ब तापमान जब चाहे 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहे। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 2019 तक बीस साल में हर वर्ष औसतन 23.5 बार ग्रीष्म लहर या लू की स्थिति रही। यह 1980 से 1999 के सालाना औसत 9.9 से दोगुना से ज्यादा है। 2010 से 2019 के बीच भारत में पिछले दशक के मुकाबले हीट वेव के घटनाक्रम 25 फीसदी बढ़े हैं। गर्मी से मौतों की संख्या में 27% बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले साल हीट वेव के दिनों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। इससे पहले 2012 में सबसे अधिक दिनों तक लू चली थी।

रिसर्च संगठन वर्ल्ड वैदर एट्रिब्यूशन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले साल हीट वेव तीस गुना ज्यादा बढ़ गई। भारत का औसत तापमान 1900 से 2018 के बीच 0.7 डिग्री सेल्सि. के आसपास बढ़ा है। इससे हीटवेव और ज्यादा बढ़ गई। शहरी इलाकों में टेम्परेचर नजदीकी ग्रामीण इलाकों से दो डिग्री सेल्सि. अधिक हो सकता है। मेकिन्से ग्लोबल का अनुमान है, 2017 में भारत के जीडीपी में गर्मी से प्रभावित होने वाले काम की हिस्सेदारी 50% थी। लेबर फोर्स का 75% या 38 करोड़ लोग ऐसे काम में लगे थे। 2030 तक जीडीपी में ऐसे काम का हिस्सा 40% हो जाएगा। काम के घंटे कम होने से जीडीपी को 2.5-4.5% तक नुकसान का खतरा रहेगा। यह 12 लाख करोड़ रुपए से 20 लाख करोड़ रुपए के बीच हो सकता है।

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